Sunday, July 20, 2008

हीर


हीर सियाली कर्मां वाली
जिस रांझण ना पाया
इक उडारी ऐसी मारी
आल्हणा खेड़ियां दे घर पाया
बिण रांझण ना जीया जावे
जा मौत नूं गले लगाया
मैं वी हां इक हीर सलेटी
जिस जोगी वर पाया
इस जोगी मैनूं कीता कमली
सारी उम्र रुलाया
अक्खीयां थक्कीयां तक-तक बूहा
पर जोगी ना आया
नां जियोंदी हां, ना मोई हां
रब्बा इह की खेड रचाया

7 comments:

Anonymous said...

vha bhut sundar or bhut alag rachana. badhai ho. jari rhe.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत वदिया!!

अक्खीयां थक्कीयां तक-तक बूहा
पर जोगी ना आया
नां जियोंदी हां, ना मोई हां
रब्बा इह की खेड रचाया

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया। बहुत समय बाद पंजाबी गीत पढ़ मजा आ गया।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

पंजाबी में होने के बावजूद भी समझ पाया. :)

डॉ .अनुराग said...

bahut badhiya.....punjabi geet ka alag maja hai.

seema gupta said...

nice to read in punjabi lil bit diffecult to undrstand but liked. N ya thanks for ur encouragement and appreciation on my poetry. Regards

ताऊ रामपुरिया said...

प्हाई जितनी तारीफ़ करूं कम पड़ेगी !
इतनी सुंदर , कलेजे को चीर देने वाली
हीर कहूँ या क्या कहूँ ? मैंने नही पढी !
भाई थमनै प्रणाम ! बस जब भी लिखो
छुपाना मत ! शुभकामनाए !