Wednesday, July 23, 2008

इश्क़ ही रब्ब


लोक आखदे इश्क़ है ज़ात रब्ब दी
मैं आखदां इश्क़ ही रब्ब हुंदा

रब्ब लभदे लोक मंदरा-मसीतां विच
बिन वेखे ही रब्ब दा दीदार हुंदा

सस्सी लभिया रब्ब विच मरुथलां
हीर रांझण रब्ब लई ज़हर प्याला पीता

सोहणी महिवाल यार विच झिनाब पाया
लैला दे इश्क़ ने मजनूं मलंग कीता।

Sunday, July 20, 2008

हीर


हीर सियाली कर्मां वाली
जिस रांझण ना पाया
इक उडारी ऐसी मारी
आल्हणा खेड़ियां दे घर पाया
बिण रांझण ना जीया जावे
जा मौत नूं गले लगाया
मैं वी हां इक हीर सलेटी
जिस जोगी वर पाया
इस जोगी मैनूं कीता कमली
सारी उम्र रुलाया
अक्खीयां थक्कीयां तक-तक बूहा
पर जोगी ना आया
नां जियोंदी हां, ना मोई हां
रब्बा इह की खेड रचाया

Saturday, July 19, 2008

मैं वारी जावां


मैं वारी जावां
मेरा सज्जन घर आया
बांहीं उहदे रंगला चूड़ा
जिऊं संध्या दी लाली
पैरीं उहदे पाई झांजर
उहदी टोर हिरणीयां वाली
मैं वारी जावां
मेरा सज्जन घर आया
अक्खीं उहदे कज्जले दी धारी
जिवें रात कोई शगनां वाली
मत्थे उहदे टिक्का चमके
जिवें चन्न दी चानणी मतवाली
सदके जावां उस अमड़ी दे
जिस इस नूं है जाया
मैं वारी जावां
मेरा सज्जन घर आया

Friday, July 18, 2008

कौन कहता है...

कौन कहता है कांटे प्यार नहीं करते
कोई कम्बख़त फूलों से पूछकर तो देखे
कौन कहता है हवाएं आगोश में नहीं भरतीं
कोई पेड़-पौधों से पूछकर तो देखे
कौन कहता है पत्थर धड़कते नहीं
कोई शिल्पकार बनकर तो देखे
कौन कहता है समुद्र रोता नहीं
कोई साहिल पर बैठ उसके आंसूं तो पोंछे
कौन कहता है ख़ामोशी बोलती नहीं
कोई ख़ुद से बातें करके तो देखे

Thursday, July 17, 2008

प्यार


कौन कहता है कांटें प्यार नहीं करते
कोई कम्बख़त फूलों से पूछकर तो देखे

Wednesday, July 16, 2008

तेरा चेहरा


तेरा चेहरा देखूं
तो मेरा दिन निकले

तेरे सुर्ख़ गाल देखूं
तो सुरमयी शाम ढले

तेरे घने बाल
जैसे काले बादल बहकें
तेरे तीखे नैन
जैसे बिजली चमके

तू चले तो तेरी चाल
मेघ राग कहे

तेरा चेहरा देखूं
तो मेरा दिन निकले।

Monday, July 14, 2008

आंसू

बसंत आया
फूलों पर छाया यौवन का ख़ुमार
ओंस की बूदों में नहाए फूल
बाट जोह रहे हैं प्रेमी की
भंवरा आया
ओंस की बूंदें बन गईं फूल के आंसू
फूल ने प्रेमी को आलिंगन में लिया
और भूल गई कि
क्षणभर प्यार कर
चला जाएगा
सदा-सदा के लिए
और उसके पास रह जाएंगे
आंसू

Wednesday, July 2, 2008

चाय की दुकान

आफिस के सामने
मंगल की चाय की दुकान
जहां मिटती है थकान
चलिए काली जी पीते हैं चाय
क्यों न थोड़ी सी थकान मिटाएं
जहां सुनाई देता है
गिलासियों का संगीत
सुनते ही सांस हो जाती है शीत
दुकान के पीछे है कबाड़खाना
जहां होता है कबाड़ियों का आना जाना
कहने को तो है कबाड़
इनसे भी सुनता है जोग राग
आफिस के सामने
मंगल की चाय की दुकान
जहां मिटती है थकान
चलिए काली जी पीते हैं चाय
क्यों न थोड़ी सी थकान मिटाएं