Saturday, March 28, 2009

नाराजग़ी

पता नईं क्यों मेरा इह दोस्त नाराज़ रहिंदा है
कदी इह चुप कर जादां है, कदी चुप कीते ही आवाज देंदा है
कदी करदै ग़ुज़ारिश मैनूं इह चुप कीते हस्सण दी
कदी इह मेरे सुन्ने हासियां नूं अहसास देंदा है
कदी इह पूंजदा ए अथरू मेरे आपणे हत्थां नाल
कदी इह रोण विच वी मेरा साथ देंदा है
कदी दिल करदा है इह मैनूं आ गलवक्कड़ी पा जावे
कदी दिल करदा इह मैथों सदा लई दूर चला जावे
इह जद रुस्स जावे ता मेरे दिल विच टीस है उठदी
कदी इह मैनूं सुत्ते नूं वी आवाज़ देंदा है
मैं चाहना हां कदी वी इह मेरा साथ न छड्डे
जो पांदा है मेरी हर बात विच ओह बात ना छड्डे
इह चुप्प कीते जो मैनूं आवाज़ है देंदा
किते चुप कीते ही इह उह आपणी आवाज़ न छड्डे
-विजय मौदगिल

4 comments:

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती

मोहन वशिष्‍ठ said...

क्‍या सब खैरियत से तो है यार मैं तो कदि तेरे नाल नाराज नहीं रहिंदा फेर तू मेनु क्‍यों बदनाम कर रिया है बाकी बहुत ही अच्‍छी लिखी हे तूने वेरी गुड कीप इट अप नाईस

Unknown said...

Too good big b.I like this peom and their words r too much touching.....shabash big b carry on........

Neel said...

I like yur creation on Paper. I feel it as a dream