Sunday, April 5, 2009

युगां दी आवाज़

युगां-युगांतरां तो मैं सुणदा हां इक आवाज़
जो मैनूं कर जांदी है बदहवास
इह बलाउंदी है मैनू आपणे कोल
जिहनूं सुणदियां मेरी जिंद जांदी है डोल
इह लगदी है आवाज़ मैनूं शिव दे पैरां दी
जदों उह तांडव है करदा
नहीं, नहीं
इह तां है कृष्ण दी बंसरी दी आवाज़
उह जदों लीलावां है करदा
नहीं-नहीं
इह आवाज़ है शायद शकुणी दी
जो द्रोपदी दे चीरहरण दियां जुगतां है करदा
नहीं यार
शायद इह आवाज़ है लैनिन दी
जद पहिली वार उह लाल सलाम दा नारा है फड़दा
नहीं
इह आवाज़ है किसे मज़दूर दी
जद उह गैंती नाल सड़कां है पट्टदा
नहीं
मैनूं लगदै इह है मेरी आपणी आवाज़
इह मैनूं करदी है बदहवास
जो सददी है मैनूं आपणे कोल
जिहनूं सुणदियां मेरी जिंद जांदी है
विजय मौदगिल

3 comments:

jamos jhalla said...

BAADSHAHO TUSSI TE FATTE CHUK DITTE.YUGAAN DI AAWAAZ NOO CHAND AKHARAAN WICH UTAAR DITTAA. SAADHUVAAD JHALLEVICHAAR.BLOGSPOT.COM

योगेन्द्र मौदगिल said...

यार.. हेक गल्ल दस के गलास वी हैगा, बोत्तल वी हैगी पर हौर की जुगाड़ हैगा ऒ ते नी दस्या...?

खैर....
कविता बहुत अच्छी है..
८४-८५ में गुजारे पटियाला में दिनों के कारण पंजाबी बोल-समझ लेता हूं. देवनागरी में हो तो पढ़ भी लेता हूं.

आपका आमंत्रण स्वीकार है. मैं जरूर आऊंगा...

Puja Upadhyay said...

bahut accha likha hai. punjabi thodi badhut samajh me aati hai...aapki kavita padh kar laga ki kai baar kavita bhasha se upar uth jaati hai aur sirf apne maayno ke karan bahut gahre asar karti hai.