Wednesday, April 8, 2009

इश्क़

न जीण दी सुध न मरण दी चाह
इह इश्क़ बड़ा है बेपरवाह
इह वसिया मेरी रूह दे अंदर
जो डंगदा है मैनूं हर साह
न इश्क़ दी है कोई जात पात
है इश्क़ दा रब्ब इश्क़ ही आप
जा इश्क़ नहा
जा इश्क़ ही पा
जा इश्क़ कमा
जा इश्क़ ही खा
जे बुल्लिया तूं इश्क़ न करदा
रहिंदा विच गल्लियां दे सड़दा
तूं इश्क़ कमाया
तूं इश्क़ ही पाया
इस इश्क़ ने तैनूं पार लगाया
-विजय मौदगिल

14 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

्बहुत सुन्दर रचना है।

मोहन वशिष्‍ठ said...

विजय भाई

अगर मैं कहूं कि बहुत बढिया लिखा हे तुमने तो ये शब्‍द नाकाफी होंगे इस रचना के लिए मैं तुमको एक नाम देना चाहता हूं कि 1937 से 1973 के बीच शिव कुमार बटालवी ने अपनी एक अमिट छाप इस जग पर छोडी है तो 2008 से लेकर दुनिया के रहने तक तुम एक अमिट छाप छोडोगे इस जग पर शिव कुमार बटालवी दी रूह तुहाडे कौल हैगी। और तुम आने वाले समय के शिव कुमार बटालवी हो

रंजू भाटिया said...

जे बुल्लिया तूं इश्क़ न करदा
रहिंदा विच गल्लियां दे सड़दा
तूं इश्क़ कमाया
तूं इश्क़ ही पाया
इस इश्क़ ने तैनूं पार लगाया

बहुत सुन्दर ..जो इश्क करे वही इसको जाने ..

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

कविता ते तुहाडी वधिया हैगी ही ए........पर ये अपने ब्लाग दा नां तुसी बोहत चुण के रखिया जे..

jamos jhalla said...

Bande Ko Khudaa Kartaa Hai ISHQ.Aaj Kal WaalaaIshq Nahin
Ruhaani Ishq.Mohan ji Nain Aapki Tulnaa Shiv Kumaar Bataalvi Seki Hai Magar JHALLE di ichaa hai ki Bataalvi To Prernaa Jaroor Lavo Magar Pehchaan Apni Hi Banaao .VIJYIBHAV

समयचक्र said...

न जीण दी सुध न मरण दी चाह
इह इश्क़ बड़ा है बेपरवाह
बहुत सुन्दर

RAJNISH PARIHAR said...

ji m keya chha gaye tussi..kamaal di rachnaa ae ...

संगीता पुरी said...

सुंदर रचना ...

gazalkbahane said...

है इश्क़ दा रब्ब इश्क़ ही आप

सच आखिया भाई
इश्क इक रोग है कहंदे ने लोग
फ़िर वी इसदे पिच्छे पागल रहिंदे ने लोग
-दिल से दिल जब मिल जाते हैं /
हो जाती साकार मोहब्बत
उम्र भला कब आड़े आती/
हो जाए जब यार मोहब्बत
कविता या गज़ल में हेतु मेरे ब्लॉग पर आएं
http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम मौदगल्य

हरकीरत ' हीर' said...

जे बुल्लिया तूं इश्क़ न करदा
रहिंदा विच गल्लियां दे सड़दा
तूं इश्क़ कमाया
तूं इश्क़ ही पाया
इस इश्क़ ने तैनूं पार लगाया

ਬੱਲੇ ਬੱਲੇ ...ਵਿਜਯ ਜੀ ...ਵ੍ਧਾਈਆਂ ਜੀ ਵ੍ਧਾਈਆਂ .......!!

ਨ ਜੀਣ ਦੀ ਸੁਧ ਨ ਮਰਨ ਦੀ ਚਾਹ
ਇਹ ਇਸ੍ਕ਼ ਬ੍ਡਾ ਹੈ ਬੇਪਰਵਾਹ

ਕਿ ਕਰੀਏ .....

ਇਸ੍ਕ਼ ਹੀ ਮੇਰਾ ਕਪੜਾ ਲੱਤਾ
ਇਸ੍ਕ਼ ਹੀ ਮੇਰਾ ਗਹਿਣਾ ....

Urmi said...

पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ की आपको मेरी शायरी पसंद आई!
बहुत शानदार लिखा है आपने !

Archana Chaoji said...

पंजाबी तो नहीं जानती पर बहुत अच्छा लगा है ये ...उच्चारण की समझ होती तो पॉडकास्ट कर पाती ...फ़िर भी अपने सुनने के लिए तो कर ही लूँगी सीख कर,अनुमति मिलेगी ?...

सदा said...

कल 19/10/2011 को आपकी कोई एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत खूब सर!

सादर