दो कू पैर पुट्टे ने ते मैं गया हां रुक
नाप रिहा हां धरती ते अंबर विचला फ़ासला
दो कू ही बुरकियां ने अजे खादीयां
नाप रिहा हां खेतां ते थाली विचला फ़ासला
भैण छोटी नूं खेडदियां लिया है चुक
नाप रिहा हां मैं खेड ते डोली विचला फ़ासला
मां ते दादी नूं मैं गल्लां करदे वेख के
नापदा हां मैं नूंह ते मां दे विचला फ़ासला
बाप दे मोडियां तों बोरी मैं लई है चुक्क
नाप रिहा हां मैं बोरी ते अरथी विचला फ़ासला
अनुवाद
दो क़दम चला हूं अभी और गया हूं रुक
नाप रहा हूं मैं धरती और अंबर के बीच का फ़ासला
दो ही निवाले अभी है खाएं
नाप रहा हूं खेत और थाली के बीच का फ़ासला
बहन छोटी को खेलते लिया है उठा
नाप रहा हूं खेल और डोली के बीच का फ़ासला
मां और दादी को बातें करते देखकर
नापता हूं मैं बहु और मां के बीच का फ़ासला
बाप के कंधों से बोरी मैंने ली है उठा
नाप रहा हूं बोरी और अर्थी के बीच का फ़ासला
8 comments:
दो कू पैर पुट्टे ने ते मैं गया हां रुक
नाप रिहा हां धरती ते अंबर विचला फ़ासला
दो कू ही बुरकियां ने अजे खादीयां
नाप रिहा हां खेतां ते थाली विचला फ़ासला
भैण छोटी नूं खेडदियां लिया है चुक
नाप रिहा हां मैं खेड ते डोली विचला फ़ासला
tussi bada sohana likhiya h ai....
inu jaari rakho ji
दो कू ही बुरकियां ने अजे खादीयां
नाप रिहा हां खेतां ते थाली विचला फ़ासला
बहुत खूब विजय बहुत ही अच्छी कविता लिखी है तुमने बधाई हो
बहुत खूब.....पर एक मशवरा साथ साथ हिन्दी अनुवाद भी दे दिया करो.....बहुत से लोगो को आसानी होगी.
saari rachnaayen ek se badhkar ek.....
samajhne me thoda waqt laga,bhasha alag hai to,par samajh gai
khoobsurat ehsaas...
एक अनुपम रचना, असाधारण\
विजय जी बोत ही चंगी लिखी हेगंई तुसी ऎ कविता, दिल भर आया, होर फ़ेर हिन्दी विंच अनुवाद भी किता. बहुत बहुत मजा आया आप के इस बांलग पर आ कर लगा जेसे अपने घर मे आ गया.पंजाबी पढ नही सकता लेकिन बोल अच्छी सकता हू.
धन्यवाद
दो ही निवाले अभी है खाएं
नाप रहा हूं खेत और थाली के बीच का फ़ासला
wah wah! kya baat hai!Nayapan hai kavita mein..
gahre bhaav liye ek umda kavita!
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