Wednesday, September 17, 2008

फ़ासला




दो कू पैर पुट्टे ने ते मैं गया हां रुक
नाप रिहा हां धरती ते अंबर विचला फ़ासला
दो कू ही बुरकियां ने अजे खादीयां
नाप रिहा हां खेतां ते थाली विचला फ़ासला
भैण छोटी नूं खेडदियां लिया है चुक
नाप रिहा हां मैं खेड ते डोली विचला फ़ासला
मां ते दादी नूं मैं गल्लां करदे वेख के
नापदा हां मैं नूंह ते मां दे विचला फ़ासला
बाप दे मोडियां तों बोरी मैं लई है चुक्क
नाप रिहा हां मैं बोरी ते अरथी विचला फ़ासला

अनुवाद

दो क़दम चला हूं अभी और गया हूं रुक

नाप रहा हूं मैं धरती और अंबर के बीच का फ़ासला

दो ही निवाले अभी है खाएं

नाप रहा हूं खेत और थाली के बीच का फ़ासला

बहन छोटी को खेलते लिया है उठा

नाप रहा हूं खेल और डोली के बीच का फ़ासला

मां और दादी को बातें करते देखकर

नापता हूं मैं बहु और मां के बीच का फ़ासला

बाप के कंधों से बोरी मैंने ली है उठा

नाप रहा हूं बोरी और अर्थी के बीच का फ़ासला

8 comments:

manvinder bhimber said...

दो कू पैर पुट्टे ने ते मैं गया हां रुक
नाप रिहा हां धरती ते अंबर विचला फ़ासला
दो कू ही बुरकियां ने अजे खादीयां
नाप रिहा हां खेतां ते थाली विचला फ़ासला
भैण छोटी नूं खेडदियां लिया है चुक
नाप रिहा हां मैं खेड ते डोली विचला फ़ासला
tussi bada sohana likhiya h ai....
inu jaari rakho ji

मोहन वशिष्‍ठ said...

दो कू ही बुरकियां ने अजे खादीयां
नाप रिहा हां खेतां ते थाली विचला फ़ासला

बहुत खूब विजय बहुत ही अच्‍छी कविता लिखी है तुमने बधाई हो

डॉ .अनुराग said...

बहुत खूब.....पर एक मशवरा साथ साथ हिन्दी अनुवाद भी दे दिया करो.....बहुत से लोगो को आसानी होगी.

रश्मि प्रभा... said...

saari rachnaayen ek se badhkar ek.....
samajhne me thoda waqt laga,bhasha alag hai to,par samajh gai

मीत said...

khoobsurat ehsaas...

Vinay said...

एक अनुपम रचना, असाधारण\

राज भाटिय़ा said...

विजय जी बोत ही चंगी लिखी हेगंई तुसी ऎ कविता, दिल भर आया, होर फ़ेर हिन्दी विंच अनुवाद भी किता. बहुत बहुत मजा आया आप के इस बांलग पर आ कर लगा जेसे अपने घर मे आ गया.पंजाबी पढ नही सकता लेकिन बोल अच्छी सकता हू.
धन्यवाद

Alpana Verma said...

दो ही निवाले अभी है खाएं

नाप रहा हूं खेत और थाली के बीच का फ़ासला



wah wah! kya baat hai!Nayapan hai kavita mein..
gahre bhaav liye ek umda kavita!