कोई न जाने इश्क़ की ज़ात को
न कोई पहचाने तेज़ाब की बरसात को
खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
कोई न जाने दिल की पीड़ को
कोई न देखे दिल होए लीरो-लीर को
इश्क़ के सागर में लगाते हैं सारे ही डुबकी
न कोई पहचाने शिकरे यार को
कोई न जाने ग़ज़ल की बहर को
न कोई पहचाने ग़ज़ल के ज़हर को
ये हल्के-हल्के है दिल में उतरता
जो रोक देता है धड़कनों की लहर को
शिकरा- दिल का मांस खाने वाला पक्षी
19 comments:
खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
बहुत खूब...विजय जी..वाह .लिखते रहें...
नीरज
बढिया लिखा है।बधाई।
कोई न जाने इश्क़ की ज़ात को
न कोई पहचाने तेज़ाब की बरसात को
खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
वाह विजय जी मजा आ गया हम आपके जज्वात को समझ गए बहुत ही गहरा भाव है आपकी कविता का बधाई हो एक अति उत्तम रचना के लिए
कोई न जाने दिल की पीड़ को
कोई न देखे दिल होए लीरो-लीर को
इश्क़ के सागर में लगाते हैं सारे ही डुबकी
न कोई पहचाने शिकरे यार को
क्या बात है भाई...बहुत अच्छे
कोई न जाने इश्क़ की ज़ात को
न कोई पहचाने तेज़ाब की बरसात को
खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
कोई न जाने दिल की पीड़ को
कोई न देखे दिल होए लीरो-लीर को
इश्क़ के सागर में लगाते हैं सारे ही डुबकी
क्या बात है भाई...बहुत अच्छे
बहुत ही सुन्दर लिखी हे आप ने यह कविता, कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को....
धन्यवाद
बहुत उम्दा, क्या बात है!
आनन्द आ गया.
एक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद
वीनस केसरी
कोई न जाने इश्क़ की ज़ात को
न कोई पहचाने तेज़ाब की बरसात को
" uf, kya ehsas hai, kya jujbaat hain, bhut sunder"
Regards
कोई न जाने दिल की पीड़ को
कोई न देखे दिल होए लीरो-लीर को
इश्क़ के सागर में लगाते हैं सारे ही डुबकी
न कोई पहचाने शिकरे यार को
संवेदनापूर्ण काव्यभाव..
खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
आपने इस शेर के माध्यम से बहुत गहरी बात कही है। बधाई स्वीकारें।
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
कोई न जाने दिल की पीड़ को
कोई न देखे दिल होए लीरो-लीर को
bahut khub.....bahut sachi or gahri baat kahi hai....
खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को।
सुन्दर शेर है, बधाई।
Wah..Wah
क्या बात है भाई
सुंदर कविता के लिये बधाई
खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
bahut sundar...waah.
अच्छी रचना है। बधाई स्वीकारें।
behad hi khoobsoorat jajbaat hai....badhai...
विजय जी,' कोई न देखे दिल होए लीरो-लीर को' की जगह- 'कोई न देखे लीरो- लीर होए दिल को' होता तो सही नहीं था? यूँ आपकी नज्म पसंद आई...
न कोई पहचाने ग़ज़ल के ज़हर को
ये हल्के-हल्के है दिल में उतरता..
bahut khuub ..
खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
Jo suukhey patton ke jazbaat bhi samjhtey hain..wahi to kavi hota hai na!
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