Wednesday, September 24, 2008

पीड़

कोई न जाने इश्क़ की ज़ात को
न कोई पहचाने तेज़ाब की बरसात को
खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
कोई न जाने दिल की पीड़ को
कोई न देखे दिल होए लीरो-लीर को
इश्क़ के सागर में लगाते हैं सारे ही डुबकी
न कोई पहचाने शिकरे यार को
कोई न जाने ग़ज़ल की बहर को
न कोई पहचाने ग़ज़ल के ज़हर को
ये हल्के-हल्के है दिल में उतरता
जो रोक देता है धड़कनों की लहर को
शिकरा- दिल का मांस खाने वाला पक्षी

19 comments:

नीरज गोस्वामी said...

खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
बहुत खूब...विजय जी..वाह .लिखते रहें...
नीरज

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया लिखा है।बधाई।

मोहन वशिष्‍ठ said...

कोई न जाने इश्क़ की ज़ात को
न कोई पहचाने तेज़ाब की बरसात को
खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को

वाह विजय जी मजा आ गया हम आपके जज्‍वात को समझ गए बहुत ही गहरा भाव है आपकी कविता का बधाई हो एक अति उत्‍तम रचना के लिए

डॉ .अनुराग said...

कोई न जाने दिल की पीड़ को
कोई न देखे दिल होए लीरो-लीर को
इश्क़ के सागर में लगाते हैं सारे ही डुबकी
न कोई पहचाने शिकरे यार को

क्या बात है भाई...बहुत अच्छे

manvinder bhimber said...

कोई न जाने इश्क़ की ज़ात को
न कोई पहचाने तेज़ाब की बरसात को
खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
कोई न जाने दिल की पीड़ को
कोई न देखे दिल होए लीरो-लीर को
इश्क़ के सागर में लगाते हैं सारे ही डुबकी
क्या बात है भाई...बहुत अच्छे

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर लिखी हे आप ने यह कविता, कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को....
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा, क्या बात है!
आनन्द आ गया.

वीनस केसरी said...

एक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद
वीनस केसरी

seema gupta said...

कोई न जाने इश्क़ की ज़ात को
न कोई पहचाने तेज़ाब की बरसात को
" uf, kya ehsas hai, kya jujbaat hain, bhut sunder"

Regards

art said...

कोई न जाने दिल की पीड़ को
कोई न देखे दिल होए लीरो-लीर को
इश्क़ के सागर में लगाते हैं सारे ही डुबकी
न कोई पहचाने शिकरे यार को

संवेदनापूर्ण काव्यभाव..

Arshia Ali said...

खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को

आपने इस शेर के माध्‍यम से बहुत गहरी बात कही है। बधाई स्‍वीकारें।

Anonymous said...

कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
कोई न जाने दिल की पीड़ को
कोई न देखे दिल होए लीरो-लीर को
bahut khub.....bahut sachi or gahri baat kahi hai....

admin said...

खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को।


सुन्‍दर शेर है, बधाई।

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah..Wah
क्या बात है भाई
सुंदर कविता के लिये बधाई

pallavi trivedi said...

खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को

bahut sundar...waah.

Arshia Ali said...

अच्छी रचना है। बधाई स्वीकारें।

Poonam Agrawal said...

behad hi khoobsoorat jajbaat hai....badhai...

हरकीरत ' हीर' said...

विजय जी,' कोई न देखे दिल होए लीरो-लीर को' की जगह- 'कोई न देखे लीरो- लीर होए दिल को' होता तो सही नहीं था? यूँ आपकी नज्‍म पसंद आई...

Alpana Verma said...

न कोई पहचाने ग़ज़ल के ज़हर को
ये हल्के-हल्के है दिल में उतरता..

bahut khuub ..

खिला फूल तो है सदा ही महकता
कोई न जाने सूखे पत्तों के जज़बात को
Jo suukhey patton ke jazbaat bhi samjhtey hain..wahi to kavi hota hai na!