Wednesday, July 2, 2008

चाय की दुकान

आफिस के सामने
मंगल की चाय की दुकान
जहां मिटती है थकान
चलिए काली जी पीते हैं चाय
क्यों न थोड़ी सी थकान मिटाएं
जहां सुनाई देता है
गिलासियों का संगीत
सुनते ही सांस हो जाती है शीत
दुकान के पीछे है कबाड़खाना
जहां होता है कबाड़ियों का आना जाना
कहने को तो है कबाड़
इनसे भी सुनता है जोग राग
आफिस के सामने
मंगल की चाय की दुकान
जहां मिटती है थकान
चलिए काली जी पीते हैं चाय
क्यों न थोड़ी सी थकान मिटाएं

3 comments:

सतीश पंचम said...

सहज कविता....अच्छी है।

Alpana Verma said...

seedhi saral si kavita hai..

Udan Tashtari said...

मिटाईये थकान-अच्छा लगा.