आफिस के सामने
मंगल की चाय की दुकान
जहां मिटती है थकान
चलिए काली जी पीते हैं चाय
क्यों न थोड़ी सी थकान मिटाएं
जहां सुनाई देता है
गिलासियों का संगीत
सुनते ही सांस हो जाती है शीत
दुकान के पीछे है कबाड़खाना
जहां होता है कबाड़ियों का आना जाना
कहने को तो है कबाड़
इनसे भी सुनता है जोग राग
आफिस के सामने
मंगल की चाय की दुकान
जहां मिटती है थकान
चलिए काली जी पीते हैं चाय
क्यों न थोड़ी सी थकान मिटाएं
3 comments:
सहज कविता....अच्छी है।
seedhi saral si kavita hai..
मिटाईये थकान-अच्छा लगा.
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