मेरे ज़ेहन से गुज़र कर
हाथों के रस्ते
सफ़ेद आकाश में
उड़ान भरतें हैं
नीले कबूतर
इन कबूतरों को
रब की उम्र लग जाये
Monday, July 14, 2008
आंसू
बसंत आया फूलों पर छाया यौवन का ख़ुमार ओंस की बूदों में नहाए फूल बाट जोह रहे हैं प्रेमी की भंवरा आया ओंस की बूंदें बन गईं फूल के आंसू फूल ने प्रेमी को आलिंगन में लिया और भूल गई कि क्षणभर प्यार कर चला जाएगा सदा-सदा के लिए और उसके पास रह जाएंगे आंसू
वाह विजय बधाई हो बहुत ही अच्छी रचना पेश की है। मैं काफी दिनों से सोच रहा था कि विजय मौन क्यूं है अब पता चला कि वो तो एक ऐसी रचना रच रहा है जिसका कोई सानि ना हो बधाई हो बहुत खूब यार
5 comments:
सदा-सदा के लिए
और उसके पास रह जाएंगे
आंसू
सही कहा आपने ..सुंदर लिखा है
अच्छा शब्द चित्रण किया है।
ओंस की बूंदें
बन गईं
फूल के आंसू
Sunder Rachna, badhai.
वाह विजय बधाई हो बहुत ही अच्छी रचना पेश की है। मैं काफी दिनों से सोच रहा था कि विजय मौन क्यूं है अब पता चला कि वो तो एक ऐसी रचना रच रहा है जिसका कोई सानि ना हो बधाई हो बहुत खूब यार
ओंस की बूंदें बन गईं फूल के आंसू
"ek sunder rachna"
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