Wednesday, July 23, 2008

इश्क़ ही रब्ब


लोक आखदे इश्क़ है ज़ात रब्ब दी
मैं आखदां इश्क़ ही रब्ब हुंदा

रब्ब लभदे लोक मंदरा-मसीतां विच
बिन वेखे ही रब्ब दा दीदार हुंदा

सस्सी लभिया रब्ब विच मरुथलां
हीर रांझण रब्ब लई ज़हर प्याला पीता

सोहणी महिवाल यार विच झिनाब पाया
लैला दे इश्क़ ने मजनूं मलंग कीता।

11 comments:

कुश said...

लैला दे इश्क़ ने मजनूं मलंग कीता।

क्या बात है पंजाबी ग़ज़ल पढ़के तो मान प्रसन्न हो गया

Anonymous said...

vha panjabi gajal. bhut sundar. jari rhe.

रंजू भाटिया said...

इश्क ही रब्ब है ....

सस्सी लभिया रब्ब विच मरुथलां
हीर रांझण रब्ब लई ज़हर प्याला पीता
बहुत सुंदर पञ्जाबी विच पढ़न दा मजा ही हौर है :) अमृता दी नई पोस्ट जरुर पढ़ना

kalism said...

very good punjabi

शायदा said...

सच्चियां गल्‍लां....

Udan Tashtari said...

पंजाबी ग़ज़ल--वाह!

Suresh Gupta said...

प्रेम ईश्वर का एक रूप है. आपने अपने परिचय में बहुत अच्छी बात कही है. सकारात्मक सोच न सिर्फ़ अपने जीवन को बल्कि दूसरों के जीवन को भी सुखी बनाता है.

vipinkizindagi said...

पंजाबी ग़ज़ल पढ़कर अच्छा लगा
मेरे ब्लॉग पर भी आये

ताऊ रामपुरिया said...

रब्ब लभदे लोक मंदरा-मसीतां विच
बिन वेखे ही रब्ब दा दीदार हुंदा
वाह प्हाई वाह ! बाबा बुल्लेशाह जी
की याद आगई ! भई बहुत सुंदर !

योगेन्द्र मौदगिल said...

भई वाह पंजाबी तड़का मजा आ गया
इससे भी बढ़ कर यह कि अब मौदगिल एक और एक ग्यारह हो जाएंगे
बधाई मेरे भाई

Anonymous said...

अरे यार सुखवंत जी से कहो कि कुछ हमें भी दें दें अपने ब्लॉग के लिए। खासकर बेटियों वाले ब्लॉग के लिए....