Wednesday, January 28, 2009

ख़्वाब

मेरी मां हत्थां दे विच
बुणदी ऐ कुझ ख़्वाब
पहला ख़्वाब बुणिया सी
पुत्त नूं जमण दा
दूजा, पुत्त दे अफ़सर लगण दा
तीजा ख़्वाब बुणिया सी
पुत्त दे सेहरा बझण दा
हुण मेरी मां बुणदी ए
फिर कुझ कू ख़्वाब
उणदी ए उह ख़्वाब
दादी बनण दे
चक्कदी ए उह कुंडे
पोतरे दीयां जराबां दे
नूंह नूं दिंदी ए आशीर्वाद
रब्ब सुणु मेरी फ़रियाद
घर विच आऊ राजकुमार
मेले लगणगे
हुण मेरी मां उणदी ए
कुझ ख़्वाब

5 comments:

Alpana Verma said...

panjabi to samjh nahin aati--kya kahen?

रवीन्द्र प्रभात said...

सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!

Vinay said...

बहुत सुन्दर कविता, समझने में थोड़ी मुश्किल रही , पर मुश्किल नहीं तो आसाँ भी क्या/


---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

वाह!

डॉ .अनुराग said...

जवाब नही हजूर 1