Wednesday, February 4, 2009

जब से तुम हो गई

ये आंखें है पत्थराई
अच्छी लगती है तन्हाई
जब से तुम हो गई...
ये दुनिया है इक मेला
भीड़ में हूं फिर भी अकेला
जब से तुम हो गई...
अश्क बहाते हैं ये नैन
अब न दिल को मेरे चैन
जब से तुम हो गई...
न चिड़िया करती मुझसे बातें
अब न फूल ही मुझको भाते
जब से तुम हो गई...
चाहता हूं सूरज छिप जाए
अगला दिन कभी न आए
जब से तुम हो गई...
मेरी सांसें भी थम जाएं
मुझको नींद से न कोई जगाए
जब से तुम हो गई...

8 comments:

रंजना said...

Virah vyatha ki sashakt aur sundar abhivyakti.

रंजू भाटिया said...

बिछोह का दर्द सुंदर भाव पूर्ण लिखा आपने

निर्मला कपिला said...

पहली बार आपका ब्लोग देखा बहुत बडिया लिख्ते हंापका प्रोफाइल देख कर लगा सकारात्मक अभिव्यक्ति होगी लेकिन आपने तोहमारा मन भी अशांत कर दिया बहुत खूब्

डॉ .अनुराग said...

हिन्दी में आज ......?

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छी रचना है...

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर जी.
धन्यवाद

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

bahut sunder rachna

Gianna said...

Interesting thoughtss