Friday, February 11, 2011

वेश्या

ये कविता मूल रूप से पंजाबी की है और इसका अनुवाद भी साथ में लिख रहा हूं

मत्थे ते चिंता
अक्खां विच आस
गल्लां ते लाली
बुल्लां ते सुर्खी
मैं मूरत हां

खंडर हां
बंजर हां
हरे-भरे खेतां विच
सुक्का दरख़्त हां
मैं प्यास हां

दीवे दी फड़फड़ांदी लाट हां
लोकां दे हत्थी मिणया आकाश हां
हनेरी हां, झक्खड़ हां
बेकस हां, बेकल हां
भटकन हां
भटकन दा ठहराव हां
बालड़ी हां
कुच्छड़ खड़ौणा है
खेड हां
लोकां दी भुक्ख हां
मेरी देह ते लिखया है
सु-स्वागतम्
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अनुवाद

माथे पे चिंता
आंखों में आस
गालों पे लाली
होठों पे सुर्खी
मैं मूरत हूं

खंडर हूं
बंजर हूं
हरे-भरे खेतों में
सूखा दरख़्त हूं
मैं प्यास हूं

दीये की फड़फड़ाती लौ हूं
लोगों के हाथों से नपा आकाश हूं
अंधेरी हूं, बवंडर हूं
बेकस हूं, बेकल हूं
भटकन हूं
भटकन का ठहराव हूं

बच्ची हूं
बगल खिलौना है
खेल हूं
लोगों की भूख हूं
मेरी देह पे लिखा है
सु-स्वागतम