ये कविता मूल रूप से पंजाबी की है और इसका अनुवाद भी साथ में लिख रहा हूं
मत्थे ते चिंता
अक्खां विच आस
गल्लां ते लाली
बुल्लां ते सुर्खी
मैं मूरत हां
खंडर हां
बंजर हां
हरे-भरे खेतां विच
सुक्का दरख़्त हां
मैं प्यास हां
दीवे दी फड़फड़ांदी लाट हां
लोकां दे हत्थी मिणया आकाश हां
हनेरी हां, झक्खड़ हां
बेकस हां, बेकल हां
भटकन हां
भटकन दा ठहराव हां
बालड़ी हां
कुच्छड़ खड़ौणा है
खेड हां
लोकां दी भुक्ख हां
मेरी देह ते लिखया है
सु-स्वागतम्
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अनुवाद
माथे पे चिंता
आंखों में आस
गालों पे लाली
होठों पे सुर्खी
मैं मूरत हूं
खंडर हूं
बंजर हूं
हरे-भरे खेतों में
सूखा दरख़्त हूं
मैं प्यास हूं
दीये की फड़फड़ाती लौ हूं
लोगों के हाथों से नपा आकाश हूं
अंधेरी हूं, बवंडर हूं
बेकस हूं, बेकल हूं
भटकन हूं
भटकन का ठहराव हूं
बच्ची हूं
बगल खिलौना है
खेल हूं
लोगों की भूख हूं
मेरी देह पे लिखा है
सु-स्वागतम
51 comments:
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
.... आपकी लेखनी को नमन बधाई
हिंदी और पंजाबी दोनों ही भाषा में आपकी अभिव्यक्ति बहुत ही प्रभावशाली लगी ।
अंतिम पंक्तियाँ बहुत ही मार्मिक ...
.
खेल हूं
लोगों की भूख हूं
मेरी देह पे लिखा है
सु-स्वागतम
एक सच को उजागर कर दिया आपने .....जिसे हम समाज में घृणित समझते हैं ....विडंबना है कि उसे भी हम ही बनाते हैं और अपनी बनाई हुई चीज से घृणा करते हैं ...जीवन भी क्या विरोधाभास है .....आपका आभार
kitna spasht satya ... bagal me khilauna , per hun bhookh ! uff , mann khali khali ho gaya
वाह...किन शब्दों में इस अप्रतिम रचना की प्रशंशा करूँ...बेजोड़...
नीरज
बेमिशाल रचना ....हिंदी और पंजाबी दोनों ही भाषा में .....
sach me dil ko chhuti hui..:)
hila dene wali nazm hai.....speechless!!!
मौदगिल जी कई बार पढ़ी आपकी नज़्म ...
फिर पंजाबी वाली भी .....
पंजाबी में ज्यादा मज़ा आया ...
अनुवाद बहुत ही बढ़िया किया आपने ...
और नज़्म तो माशाल्लाह .....
अच्छी लगी रचना ।
लौहांगना ब्लॉगर का राग-विलाप
मार्मिक ...बेजोड़ रचना...
मार्मिक कविता |
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ |
सभी कविताएं रोचक एवं बेजोड़|
sad...
ਸਬਤੋਂ ਪਹਿਲਾ,
ਬ੍ਰਦਰ ਤੁਹਾਡੇ ਬਲੋਗ ਦਾ ਟਾਈਟਲ ਮੈਨੂ ਵਧਿਯਾ ਲਗਾ... ਅਸ਼ਾੰਤ ਮਹਾਸਾਗਰ.
ਨਾਲੇ ਕਵਿਤਾ ਤੋ ਦਰਦ ਬਯਾਂ ਕਰਤੀ ਹੈ ਏਕ ਵੈਸ਼ਯਾ ਕਾ....
ਆਸ਼ੀਸ਼
--
ਲਮ੍ਹਾ!!!
Mujhe punjabi nahi aati zyada.. magar jaane kavita k bhav de ya bhasha ki sadgi k mann me gehre utar gayi ye sundar rachna :)
बच्ची हूं
बगल खिलौना है
खेल हूं
लोगों की भूख हूं
मेरी देह पे लिखा है
सु-स्वागतम
नारी को एक वीभत्स रूप जो हमारे समाज ने ही उसे दिया.. प्रकृति ने तो उसे इस संसार को रचने माँ के रूप में भेजा था.. मार्मिक प्रस्तुति...
ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਸਬਦ ਨੀ ਹੈ ... ਇਸ ਰਚਨਾ ਦੀ ਤਾਰੀਫ਼ ਕਰਨ ਲਈ ... ਬਹੁਤ ਵਦੀਯਾ ...
bahut hi badhiya likha hai ,laazwaab .
खेल हूं
लोगों की भूख हूं
मेरी देह पे लिखा है
सु-स्वागतम
कुछ कहते नही बनता एक नंगा सच जो सदियों से नारी की विडंबना को बद से बद्तर करता चला गौअ। वैसे विजय जी पंजाबी मुझे भी बहुत अच्छी लगती है, कभी कभी लिखती भी हूँ। पंजाब दी खुश्बू नामक ब्लाग पर लिखती रही हूँ। मगर टाईप करने मे मुश्किल लगती है। पंजाबी मे जितने एक भाव के लिये शब्द मिलजाते हैं शायद उतने हिन्दी मे नही। बहुत अच्छा लगा आपका ब्लाग। शुभकामनायें।
प्रभाव छोड़ने में कामयाब हो ! शुभकामनायें !!
बहुत सुन्दर रचना एवं अनुबाद भी . बधाई स्वीकारें
सार्थक प्रस्तुति .
aap sab guni sajano ka hosla afzai k liye bahut bahut shukriya
aapki rachna antarman ko jhakjhor gayi...bahut hi marmik rachna...
ਆਪ ਨੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਖੂਬਸੂਰਤ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਇੱਕ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਕੀ ਤਰਾਸਦੀ ਨੂੰ.
अनुवाद भी बहुत प्रभावशाली है...
.. बहुत-बहुत बधाई !
panjabi to mai samajh nahi sakti par uska anuvad bahut sunder laga.........
बहुत सुन्दर कविता
पंजाबी कविता भी समझ में आ ही गया था, अधिकतर...
अच्छा लिखा है...अनुवाद भी बहुत अच्छा है...:)
हिन्दी और पंजाबी दोनो भाषा मे कविता बहुत अच्छी लगी
अगर हिंदी रूपांतर न देते तो समझना मुश्किल होता मेरे लिए.बढ़िया है .
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ |
बहुत रोचक और बेमिशाल रचना ....
बहुत सारी शुभ कामनाएं आपको !!
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ |
बहुत रोचक और बेमिशाल रचना ....
बहुत सारी शुभ कामनाएं आपको !!
First time in your blog..first of all congratulations for unique & versatile blog name.
खंडर हूं
बंजर हूं
हरे-भरे खेतों में
सूखा दरख़्त हूं
मैं प्यास हूं...
Nice poem .
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में बेमिशाल प्रस्तुति| धन्यवाद|
आपके ब्लॉग पर तो पहली बार आई, पर बहुत अच्छा लगा. आप अच्छा लिखते हैं.
'पाखी की दुनिया' में भी तो आइये !!
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती! बधाई!
'भटकन हूँ
भटकन का ठहराव हूँ'
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'मेरी देह पे लिखा है
सु-स्वागतम '
मर्मश्पर्सी , यथार्थपरक ,भावपूर्ण रचना .....शब्द चयन बहुत सराहनीय
ਬਹੁਤ ਹੀ ਵਧੀਆ ਕਵਿਤਾ.
ਤੁਸੀਂ ਤਾਂ ਸਾਰਾ ਦਰਦ ਹੀ ਪਿਰੋ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਇਸ ਵਿਚ.
ਤੁਹਾਡੀ ਵਿਲ੍ਖ੍ਣੀ ਕ਼ਲਮ ਨੂੰ ਸਲਾਮ.
लोगों की भूख हूं
मेरी देह पे लिखा है
सु-स्वागतम
बहुत मार्मिक ....सटीक अभिव्यक्ति
लोगों की भूख हूं
मेरी देह पे लिखा है
सु-स्वागतम
उफ्फ!!!
बहुत अच्छी लगी रचना...
मार्मिक प्रस्तुति...
पहली बार आई हूँ आपके ब्लाग पर. आकर बहुत अच्छा लगा .उस जीवन की व्यथा और विडंबना को बहुत प्रभावी रूप में व्यक्त किया है .
और कविताएं भी ,मन को डुबो देने वाली हैं !अभिनन्दन !
आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
bahut khoob hain
mere blog ko follow karne k liye thanks
visit
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
yaar vijay tujhe badhai to kya dun jab itne guni sajjan de chuke hain to meri visat hi kya but tune jo likhe kahar barpa diya yaar aaj aur 4 saal me yahi farak hai ki ab tu poora kavi ban gaya hai tu hamari jaan hai to punjab ki shaan very nice keep it up
Aah ! kya kahun.....????
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ...इस बेहतरीन रचना के लिये आपका बहुत-बहुत आभार ।
Kya khana
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