सूर्य उगता है तो कविता बनती है
सूर्य अस्त होता है तो कविता बनती है
फूल खिलते हैं और फिर मुरझा जाते हैं
चांद निकलता है और फिर अमावस आती है
कभी बारिश की बूंदे धरती पर पड़ती हैं
तो कभी अकाल पड़ता है
कोई महलों में रहता है
तो कोई भूख से बिलखता है
कोई परियों सी घूमती है
कोई तन ढकने के लिए कपड़े को तरसती है
दुनिया की हर शय में कविता है
हर शय ख़ाक हो जाती है
नहीं मरती तो सिर्फ़ कविता
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दुनिया की हर शय में कविता है
हर शय ख़ाक हो जाती है
नहीं मरती तो सिर्फ़ कविता
sahi likha hai vijay ji aap ne
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