Thursday, June 19, 2008

वो मेरे साथ थी

कौन है मेरा अपना
जाने कब से खोज रहा हूं
अभी तक नहीं मिला
मुझे लगा मेरी मां है मेरी अपनी
नहीं
वो तो चली गई
पता नहीं कहां
हवा में है या
धरती में
मुझे लगा शायद मेरे पिता हैं
मेरे अपने
नहीं, वो भी तो मुझे
मां की ही तरह छोड़ गए थे
मुझे लगा शायद मेरे भाई-बहन
मेरे दोस्त, मेरे सगे-संबंधी
ये सब मेरे अपने हैं
लेकिन नहीं
वो भी तो मेरे मां-बाप की तरह ही
मुझे छोड़कर चले जाएंगे
तो कौन है मेरा अपना
आख़िर मैंने उसे ढूंढ़ ही लिया
वो हर समय मेरे साथ रहती है
दुख में, सुख में
जब मैं उदास होता हूं
तो मेरे साथ उदास होती है
जब मैं ख़ुश होता हूं
तो मेरे साथ ठहाके लगाती है
हर पल
हर लम्हा
वो मेरे साथ है
वो हर पल अहसास करवाती है
अपने साथ होने का
कहीं ज़िंदगी के आख़िरी राह पर
वो मेरा साथ न छोड़ दे
नहीं, उसने मेरा साथ नहीं छोड़ा
वो अब भी मेरे साथ है
मेरे आख़िरी सफ़र पर
जब मेरा सफ़र ख़त्म हुआ
वो मेरे साथ थी

6 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...

लिखा अच्‍छा है लेकिन बिल्‍कुल छका देने वाला और अंत तक भी कोई जवाब ही नहीं मिला कई बार पढा लेकिन ये तो बताओ है कौन वो बाकी बहुत अच्‍छा लिखा लिखते रहो हम भी आप पर लिखते रहेंगे कमेंट यार
very nice

Anonymous said...

sundar rachana.badhai ho.

Udan Tashtari said...

मेरे आख़िरी सफ़र पर
जब मेरा सफ़र ख़त्म हुआ
वो मेरे साथ थी

--सही है. बढ़िया.

डॉ .अनुराग said...

हर पल
हर लम्हा
वो मेरे साथ है
वो हर पल अहसास करवाती है
अपने साथ होने का
कहीं ज़िंदगी के आख़िरी राह पर
वो मेरा साथ न छोड़ दे

bahut khoob dost.....bas thoda sa twist aot de dete aakhir me to puri mukkammml ho jati.....

Kumar Mukul said...

वाह आपकी कविताएं और ब्‍लाग अच्‍छा लगा जौक को पढकर

Alpana Verma said...

मेरे आख़िरी सफ़र पर
जब मेरा सफ़र ख़त्म हुआ
वो मेरे साथ थी
--bahut sundar hai ye rachna