मेरे ज़ेहन से गुज़र कर
हाथों के रस्ते
सफ़ेद आकाश में
उड़ान भरतें हैं
नीले कबूतर
इन कबूतरों को
रब की उम्र लग जाये
Tuesday, May 20, 2008
याद
मैं चाहता हूं कि उसे भूल जाऊं उसकी याद को कैसे भुलाऊं मुझे अपने ही लगते हैं ग़ैर जिन्होंने निकाला है मुझसे बैर एक दिल करता है कि मर जाऊं पर उससे दग़ा कैसे कमाऊं मैं चाहता हूं कि उसे भूल जाऊं उसकी याद को कैसे भुलाऊं
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