सिखर दुपहर सिर ते
मेरा ढल चलिया परछावां
कब्रां उडीकदीयां
मैनूं जिओ पुत्तरां नूं मावां
ज़िंदगी दा थल तपदा
कले रुख दी होंद विच मेरी
दुखां वाली गहर चढ़ी
वगे गमां वाली तेज़ हनेरी
मैं वी किहा रुख चंदरा
जिनूं खा गईयां ओहदी छावां
सिखर दुपहर सिर ते
मेरा ढल चलिया परछावां
लखां मेरे गीत सुण लए
पर दुख नां किसे ने वी जाणिया
कईयां मेरा सीस चुमिया
पर मुख ना किसे ने पछाणिया
अज ओसे मुखड़े तों
पैया आपणा मैं आप लुकावां
सिखर दुपहर सिर ते
मेरा ढल चलिया परछावां
4 comments:
too good veerji
देव नगरी में यह
सुंदर प्रस्तुति है ,
लेकिन हिन्दी में
भावार्थ संक्षेप में
दे दिया जाए तो कैसा रहेगा ?
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बधाई
डा.चंद्रकुमार जैन
नगरी को नागरी पढ़िए.
धन्यवाद
डा.चंद्रकुमार जैन
नगरी को नागरी पढ़िए.
धन्यवाद
डा.चंद्रकुमार जैन
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