Wednesday, May 28, 2008

मेरा ढल चलिया परछावां

सिखर दुपहर सिर ते
मेरा ढल चलिया परछावां
कब्रां उडीकदीयां
मैनूं जिओ पुत्तरां नूं मावां
ज़िंदगी दा थल तपदा
कले रुख दी होंद विच मेरी
दुखां वाली गहर चढ़ी
वगे गमां वाली तेज़ हनेरी
मैं वी किहा रुख चंदरा
जिनूं खा गईयां ओहदी छावां
सिखर दुपहर सिर ते
मेरा ढल चलिया परछावां
लखां मेरे गीत सुण लए
पर दुख नां किसे ने वी जाणिया
कईयां मेरा सीस चुमिया
पर मुख ना किसे ने पछाणिया
अज ओसे मुखड़े तों
पैया आपणा मैं आप लुकावां
सिखर दुपहर सिर ते
मेरा ढल चलिया परछावां

4 comments:

Anonymous said...

too good veerji

Dr. Chandra Kumar Jain said...

देव नगरी में यह
सुंदर प्रस्तुति है ,
लेकिन हिन्दी में
भावार्थ संक्षेप में
दे दिया जाए तो कैसा रहेगा ?
===================
बधाई
डा.चंद्रकुमार जैन

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नगरी को नागरी पढ़िए.
धन्यवाद
डा.चंद्रकुमार जैन

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नगरी को नागरी पढ़िए.
धन्यवाद
डा.चंद्रकुमार जैन