Sunday, May 18, 2008

पिता जी के लिए

सुबह-सुबह सूर्य की किरणें हमारी छत पर पड़ती
और मेरे पिताजी चिडियों को दाना डालने जाते
चिडियों का झुंड आता और मेरे पिताजी की हथेली से दाने चुगता
अब ना तो सूर्य की किरणें ही हमारी छत पर पडतीं हैं
और ना ही चिडिया दाना चुगने आती हैं
सूर्य की किरणें मधम पड गई
या चिडियों को ही किसी ने मार दिया
-विजय मौदगिल

2 comments:

Nandini said...

अच्‍छी कविता है जी... और ऊपर लगी हुई तस्‍वीर भी... भई वाह... अशांत जी... इस महासागर में हम आते रहेंगे...

रचना गौड़ ’भारती’ said...

बहुत बहुत बधाई। पिताजी के लिए भाव सुन्दर है।